पलसा के पान से बनाए जा रहे हैं दोना और पत्तल

पलसा के पान से बनाए जा रहे हैं दोना और पत्तल


सारंगढ़ न्यूज।सारंगढ़ बिलाईगढ़ जिले के डोंगरीपाली क्षेत्र के गावों में आज भी हाथ से दोने और पत्तल भोजन के थाली के रूप में बनाए जा रहे हैं।जो एक छत्तीसगढ़ के पुरानी संस्कृति को दर्शाता है।जंगलों के बीच एवं ओडिशा बॉर्डर के नजदीक सटे यह गांव जहां आज भी पुरानी संस्कृति को बनाए रखे हैं।जहां दैनिक जीवन में हाथों से बनाए गए चीजों का उपयोग करते हैं।चाहे वह झाड़ू, खाट,दोना-पत्तल,चटाई या अन्य दिनचर्या की चीजें जिन्हें ये हाथों से उपयोगी बनाकर रोजमर्रा के जीवन में उपयोग कर रहे हैं।

वन क्षेत्र होने के कारण इन गावों में प्राकृतिक रूप से फल-फूल रहे पेड़-पौधों में इन्हें आसानी से पलसा के पेड़ के पत्ते मिल जाते हैं।ग्रामीणों के अनुसार गर्मी के दिनों में दोपहर के समय खाली रहता है।जिसमें हम इन सब कार्यों को करने में लगाते हैं।ग्रामीण कहते हैं की वर्तमान समय में रेडिमेड बने दोना पत्तल को लोग खाने के थाली के रूप में उपयोग कर रहे हैं लेकिन कुछ ही साल पहले हाथ से बने पलसा के पत्ते से दोना और पत्तल की डिमांड ज्यादा थी।आज कल काम ही लोग इसको उपयोग में ला रहे हैं।जिससे कम रूप से बनाए हैं जिनसे छोटे-मोटे कार्यक्रमों में खाना खिलाया जाता है।

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